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भारत की जिस पवित्रा भूमि पर भगवान् के असंख्य अवतार होते हैं उसी पर ऋषि, मुनि भक्त एवं सन्तों के भी असंख्य अवतार अनादिकाल से होते रहे हैं और भविष्य में भी निश्चित रूप से होते रहेंगे।
असंख्य सन्तजन वर्तमान में भी हमारी भारतीय संस्कृति के हीरे-मोती आम जनता में वितरित कर रहे हैं। परन्तु अपसंस्कृति के प्रदूषित वायु से धूलि धूसरित से हुए वे हीरे-मोती हमारे जीवन में अपनी चमक नहीं दिखा पा रहे हैं। सन्त समाज का यही प्रयास है कि अपनी साधना एवं सदुपदेश के पवित्रा जल से हमारी सांस्कृतिक धरोहर रूपी रत्नों को प्रक्षालित कर उसके निर्मल एवं यथार्थ रूप से मानव समाज को परिचित कराया जाय।
अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति, अपनी जीवन रिति एवं अपनी बोली भाषा को जब भी मनुष्य अपेक्षापूर्वक त्यागता है तो निश्चित ही पथभ्रष्ट और दुनियाँ में अपमानित होता हैं।
सन्तजन जन जागरण कर रहे हैं। आवश्यकता है उनके सदुपदेशों को ”दयड़्गम करते हुए अपने जीवन में उतारने की। वेद में उपदेश किया गया है -
‘यान्यस्माकं सुचरितानि तानि त्वयोपास्यानि नो इतराणि’
जो हमारे श्रेष्ठ चरित हैं वे ही तुम्हारे द्वारा अपनाये जाने योग्य हैं, दूसरे नहीं।
अतः सन्तों की मूल भावना को उनके प्रवचनों एवं व्यव्हार में से ग्रहण करना है। जिन समस्याओं को लेकर सन्तजन पीड़ित हैं, उनको समझना होगा, उनकी पीड़ा को समझना होगा। निश्चित ही चिन्तन एवं आत्मविश्लेषण की आवश्यकता है।
परम्परागत सन्तों की उपदेश सरणी का अनुकरण करने वाले गौ गंगा कृपाकांक्षी आदरणीय श्री गोपाल मणि जी वर्तमान समय में गौरक्षा एवं गौ-संवर्धन का व्रत पूर्ण करने के लिए काबिल हैं।
श्री गोपाल ‘‘मणि’’ जी का जन्म 5 जून, सन् 1958, गुरूवार अष्टमी तिथि में सूर्योदय के समय उत्तराखण्ड़ के उत्तरकाशी जनपद,पट्टी गमरी के वादसी ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। स्व0 पं0 ध्नीराम नौटियाल जी आपके पिता एवं श्रीमती रामेश्वरी देवी आपकी माता थी। गौशाला में आपका जन्म हुआ अतः सघोजात शिशु के जीवन पर सर्वप्रथम प्रभाव उसी पर्यावरण का पड़ा।
शैशवकाल में माता जी के शारीरिक दौर्बल्य के कारण मातृस्तन्य पर्याप्त न मिल पाने के कारण गौदुग्ध् से ही शैशवावस्था का संवधर््न हुआ। पूरे गाँव में इस परिवार के पास ही सर्वाध्कि 15 से 20 गायें पला करती थी। खेतों में गोमय की खाद पड़ने के कारण अख पर्याप्त होता था। अतः अवर्षक और अकाल में भी कभी अख की कमी नहीं हुई। गौदुग्ध् पान एवं गौ समुदाय देखकर प्रफुल्लित रहने वाले बालक का नाम माता-पिता ने ‘‘गोपाल’’ रख दिया। गौदुग्ध् कितना स्वास्थ्य एवं बुद्धिवर्धक होता हैं इसका प्रमाण स्वयं श्रीगोपाल ‘‘मणि’’ जी हैं। जब विद्याध्यन के लिए प्रारम्भिक पाठशाला में भर्ती किये गये तो शीघ्रातिशीघ्र विषय याद होते गये। कक्षा 5 में सर्वाध्कि अंक प्राप्त किये, किसी कक्षा में भी अवरू नहीं हुए। मेधवी छात्रा होने के कारण सरकार की ओर से छात्रावृत्ति की व्यवस्था की गयी। कक्षा 6 में प्रवेश की आयु से एक वर्ष पहले ही प्राइमरी पास हो चुके थे। इस कारण छठी कक्षा में राजकीय इण्टर काॅलेज चिन्याली सौड़ में प्रवेश न हो सका। अतः एक वर्ष तक घर पर रहकर ही अध्ययन-मनन करते रहे। अगले वर्ष संस्कृत विद्यालय उत्तरकाशी में प्रविष्ट हुए। वहाँ भी सभी विषय शीघ्रता से बु(िगत हो जाते थे तथा परीक्षाओं में प्रतिवर्ष प्रथमश्र्रेणी के अंक मिले। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं खेलकूद में भी अग्रगण्य रहे। ‘‘प्रतिमा नाटक’’ के अभिनय में विद्यालय में आपको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। क्रीड़ा क्षेत्रा में सर्वोत्तम प्रदर्शन के कारण आपको क्रीड़ा प्रभारी बनाया गया।
अध्ययनकाल सन् 1977 में आप एकदिन पुलिस मैदान में खेलने गये थे, वहाँ पुलिस की भर्ती हो रही थी। खेल-खेल में ही आप प्रतियोगिता में सम्मिलित हो गये और चुन लिय गये। पुलिस ट्रेनिंग के दौरान उत्तम अभ्यास एवं अध्ययन के कारण पासिंग आउट परेड़, कानून फाइरिंग आदि विशेष पुरस्कार प्राप्त हुए और आप बेस्ट कैडेट चुने गये। प्रशिक्षण अवधि में ज्योतिष एवं हस्तरेखा के दैवी वरदान जन्य ज्ञान से पुलिस विभाग के अधिकारी भी आपसे प्रभावित हुए बिना न रह सके।
आध्यात्मिक रूचि एवं सौम्य स्वभाव के कारण पुलिस विभाग की सर्विस में आपकी रूचि न बन सकी। अतः अठारह माह की सेवा के बाद त्यागपत्रा देकर पुनः संस्कृत के अध्ययन में संलग्न हो गये। शास्त्राी, व्याकरणाचार्य एवं शिक्षा शास्त्राी की उपाधि प्राप्त कर आप चण्डीगढ़ में केन्द्रीय विद्यालय में प्रवत्ता नियुक्त हुए। सत्संग, स्वाध्याय एवं स्वतंत्रा वृति में स्वाभाविक रूझान के कारण सर्विस छोड़कर आध्यात्मिक साध्ना में संलग्न हो गये। भागवतादि पुराणों का अध्ययन एवं प्रचार में लग गये बाल्यकाल में 12 वर्ष की आयु में उत्तरकाशी चैपड़धर में आपको एक अद्भुत अवध्ूत महात्मा के दर्शन हुए। तीन दिन तक उनका साÂिध्य रहा, तीसरे दिन वे गोपाल ‘‘मणि’’ जी को आर्शीवाद देते हुए कि ‘‘जीवन की हर परीक्षा में सफल रहेगा।’’ महात्मा लगभग 100 मीटर तक साथ चलते-चलते अन्तर्धन हो गये। कालान्तर में उसी स्थान पर प्रथम गौशाला की स्थापना हुई। यही महात्मा आपके आध्यात्मिक गुरू हैं, इन्हीं की प्रेरणा से आप आध्यात्मिक साध्ना के क्षेत्रा में अग्रसर हो गये। गौ एवं गंगा के प्रति गहन पूज्यता का भाव आपके मन-मस्तिष्क में छा गया। सन् 1984 में श्रीमद्भागवत प्रवचन आरम्भ किया, तब से लगभग 600 भागवत कथाएँ, 450 रामकथाएँ, शिवपुराण, देवीभागवत, गीता आदि ग्रन्थों पर प्रवचन करते रहे हैं।
आपकी पुत्री सीता देवी पर भी आपकी विद्वता का प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप सर्वप्रथम गौकथा उनके द्वारा कही गयी। आपके सुपुत्रा सीताशरण भी 14 वर्ष की आयु में श्री केदारनाथ धम से रामकथा का शुभारम्भ करते हुए इसी परिपाटी को आगे बढ़ा रहे हैं।
श्री गोपाल ‘‘मणि’’ जी ने 25 वर्ष की आयु में 11 माह का पयोव्रत पूर्ण किया, जिसमें 24 घण्टे में केवल एक बार आध गिलास गौदुग्ध् मात्रा का पाल किया तथा गंगाजल में खडे़ रहकर गायत्राी जप करते रहे। कई बार चालीस-चालीस दिन का व्रत अन्न का त्याग करके पूर्ण किया। गुरू साक्षात्कार स्थल चैपड़धर गौशाला में एक बार छः महीने तक 108 ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ करते-करते रहे। इस सभी साध्नाओं का फल है, ‘‘गौवंश के लिए समर्पित जीवन’’। गौकथा इसी क्रिया-कलाप का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस गौकथा का फल भी ‘‘धेनु मानस’’ के रूप में प्रकट हुआ है। जो सच्चे अर्थों में गौ को माता मानने वाले लोगों का मार्गदर्शन करेगा।
आपने सन् 2008 फरवरी माह जिस समय गंगोत्तरी में लगभग 6 फीट बर्फ टिकी होती है उस समय गौ के लिए जन-जागरण एवं गौ-गंगा व हिमालय की रक्षा हेतु केन्द्रीय सरकार का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से गंगोत्तरी से दिल्ली तक की 18 दिवसीय पैदल यात्रा का अभियान 5000 अनुयायियों के साथ पूर्ण किया। इस अभियान का प्रभाव यह हुआ कि केन्द्रीय सरकार ने गंगानदी को राष्ट्रीय ध्रोहर के रूप में मान्यता दी है। उत्तरकाशी में अपनी 200 नाली पैतृक भूमि पर आपने गौशाला का निर्माण कराया, जहाँ पर उपेक्षित एवं असुरक्षित गौओं को आश्रम प्राप्त हो रहा है। पूरे भारत में आपकी सत्प्ररेणा से 58 गौशालाओं की स्थापना हो चुकी है। 51 से अधिक गौ कथा कामधेनु यज्ञ सम्पन्न हो चुके हैं। इस प्रकार के कार्यक्रमों से गौ माता के प्रति देशवासियों का ध्यान आकृष्ट करके गौवंश की रक्षा एवं सेवा आपकी हार्दिक अभिलाषा है। गौ माहात्म्य को यथार्थ एवं सप्रमाण प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ही इस पवित्रा "धेनु मानस" ग्रंथ की रचना की बीड़ा आपने उठाया है ताकि इससे प्रेरित होकर विश्व के और विशेष रूप से भारत के लोग गौरक्षा एवं संवर्धन में अपना जीवन समर्पित कर धन्यता प्राप्त कर सके।
घर-घर गाय पहुँचे और उसकी सेवा हो। गाय पशु नहीं है अपितु एक चलता-फिरता देवालय हैं। भगवान् द्वारा देवता और मानवों के कल्याण के लिए निर्मित इस देवाल की सुरक्षा न हो सकी तो मानक निर्मित देवालयों का महत्व ही क्या रह जायेगा? इसी सन्देश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए गौक्रान्ति के अग्रदूत श्री गोपाल ‘‘मणि’’ जी ने गौ-गंगा, गौरी-गणेश एवं गुरू की सत्प्रेरणा से धेनु मानस की रचना की हैं। माता की सेवा करनेवाला कभी दुःखी दरिद्र या रोगी नहीं रहता। उसी प्रकार गौमाता की सेवा करने वालों के घर भी गौमाता के आर्शीवाद से कोई अभाव नहीं रहेगा और जीवन सुखी होगा लोक परलोक दोनों सुधरेंगे क्योंकि-‘‘गावो विश्वस्य मातरः’’।